किसी भी व्रत- त्योहार पूजन में सबसे पहले श्री गणेशजी का ध्यान और पूजन आवश्यक है | व्रत करने से पुण्य संचय होता है तथा सात्विक भाव जाग्रत होता है | इंद्रियों की शुध्दी होती है तथा आत्मबल बढ़ता है | वर्ष में साढ़े तीन अनपूछे मुहूर्त
१.चैत्र शुक्ल एकम – न्य संवत / गुडीपाडवा
२.वैशाख शुक्ल तृतीया – अक्षय तृतीया
३.अश्विन शुद्ध दशमी – विजया दशमी (दशहरा)
कार्तिक शुक्ल एकम – यह आधा मुहूर्त है |
कलपना कलपने की विधी
कलपना कलपते समय कलपने की वस्तुपर रुपया रखकर कुंकू का छीटा देकर संकल्प लेकर कलपना सासु, जिठाणी, या नंनद को देवे |
संकल्प : - मास मासे उत्तम मासे अमुक मासे, अमुक पशे, अमुक वारे, अमुक गोत्रे, अमुक नामे, अमुक निमित्त कलपना कलपना | वह श्री कृष्णार्पणास्तू बोलकर संकल्प छोडना चाहिये |
नवसंवत्सर ( गुडीपाडवा )
चैत्र शुद्ध प्रतिपदा से नया सवंत शुरू होता है | इस दिन से देवी के नवरात्र शुरू होते है | धार्मिक, सामाजिक ऐसे महत्व के कार्य और व्यावहारिक अर्थ विषयक कार्य इस दिन से शुरू होते है |
रामायण के पाठ की विधी
चैत्र शुद्ध एकम से राम नवमी तक रामायणजी का पाठ करना | श्री रामचंद्रजी का फोटो पाटे पर स्थापित कर रामायण का पाठ करना | ९ दिन तक रामायण की और भगवान की पुजा करके , पंजीरी का भोग लगाना |
नवरात्र –दुर्गा पुजा
चैत्र और आश्विन के एकम से नवमी तक नवरात्र होते है | जिन को सती वासंतिक और शारदीय नवरात्र कहते है | ९ दिन पुरे होने पर दसवे दिन विसर्जित करते है | कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है | एकम के दिन घट स्थापना और गेहूं बोने की क्रिया होती है | आप दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करवा सकते है | फिर सप्तमी,अष्टमी,नवमी को अपने घर की पध्दति के अनुसार कडाही की जाती है | नवरात्री में अपने कुलदेवी का पूजन घर के रीती रिवाज से होना चाहिये |
पुजा का सामान : -
दुर्गाजी का फोटो, गंगाजल, हल्दी, कुंकू, सिंदूर, गुलाल, लाल चंदन, अत्तर, लाल पुष्प, पुष्प हार, मोली, सफेद वस्त्र, घी का दीपक, आगरबत्ती, धुप, कपूर, गेहू, चावल, नारियल, फल, खारक, बदाम, हल्दी की गांठ, पान, सुपारी, समई, लोटा, पंचपात्र, पाटा, आसन |
कुमारी पूजन : -
देवी व्रतो में ‘कुमारी पूजन’परम आवश्क माना गया है | अगर सामर्थ्य हो तो ९ दिन छोटी कुमारी लड़की को मिष्ठान्न भोजन कराना चाहिये | एक कन्या के पूजन से ऐश्वर्य, दो से भोग और मोक्ष, तिन से धर्म,अर्थ,काम ,चार से राजपद, पांच से विद्या, छे से षट्कर्म सिद्धि, सात से राज्य की, आठ से सम्पदा और नव से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ती होती है | दो वर्ष की लड़की कुमारी, तीन की त्रिमुर्तिनी, चार की कल्याणी, पांच की रोहिणी, छः की काली, सात की चण्डिका, आठ की शाम्भवी, नव की दुर्गा,दस की सुभद्रा के स्वरूप होती है | इससे ज्यादा उम्र की लडकिय नही लेनी चाहिये | कुमरिओं के चरण धोकर फिर टिका लगाकर मोली बांधकर वस्त्र, चूड़ी,फल देकर विदा करे |
कडाही : -
सप्तमी, अष्टमी,नवमी को घर की पध्द्तिनुसार कडाही करना | साड़ी,ब्लाउज,ध्वजा,जवारा चढ़ाना, नारियल बडा करना | रात्री में रतिजोगवा देना | शादी का पहला नवरात्र या बेटा होने पर राती जोगवा दिया जाता है | गणगोर सिंजारा : -
चैत्र शुक्ल द्वितीया को गणगोर का सिंजारा आता है | इस दिन सुबह कुआरी लडकिया एवं सुहागीन स्त्रिया माथा धोना,मेहंदी लगाना | मिष्ठान्न भोजन करना | गणगोर : -
चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगोर आती है | इस दिन मध्यान्ह में गणगोर की पुजा करना | कहा जाता है शंकर भगवानने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को और सभी स्त्रियों की सोभाग्य वरदान दिया | पुजा का सामान : -
गणगोर, जवारा, पाटा, जलका लोटा, दातुन, लाल वस्त्र या ब्लाउज पीस, हल्दी, कुंकू, चावल, मेहंदी, गुलाल, गुड, दूर्वा, पुष्प, घी, बत्ती, पान, सुपारी, रुपया, आगरबत्ती, आटे का सिरा, आटे के फल, काजल | पुजा विधी : -
हररोज सुबह १६ दिन लडकिया गणगोर की पुजा करती है | दीवार पर गणगोर मंडना | फिर मध्यान को बोये हुए जवारे से पुजा करती है | इसर गोर और जवारे पर पाणी का छीटा देकर हलदी,कुंकू,चावल चढ़ाना | जवारे को मोली बांधना | १६-१६ टिकिया कुंकू,काजल,मेहंदी की लगाना | स्त्रिया ८-८ टिकिया लगाना | दातन, फल, मोली और ब्लाउज पीस चढ़ाना |सीरे और पूरी का भोग लगाना | कुवारी लडकिया १६-१६ फल और सुहागिन स्त्रिया ८-८ फल चढ़ाना | फिर दूर्वा और जवारे लेके गोर पूजना | सुहागिन स्त्रिया ४-४ फल और कुवारी लडकिया ८-८ फल वापस लेती है | गोर की कहानी, लपेश्री-तपेश्री तथा गणेशजी की कहानी सुनकर बडो को प्रणाम करना | कलपना निकालना |
उजवना : -
१६ स्त्रिया ओर १ साख्या को भोजन करावे | भोजन के बाद नारियल देना | सासुजी को पूरा सवाग सामान देना चाहिये |
श्री हनुमान जयंती
चैत्र शुक्ल पोर्णिमा को हनुमान जयंती आती है | हनुमानजी का जन्म सूर्योदय के समय हुआ है | आरती करके प्रसाद बाटे |
वैशाख कृष्ण चोथ को वैशाख चोथ आती है | वैशाख कृष्ण चोथ,भाद्रपद कृष्ण चोथ,कार्तिक कृष्ण चोथ,माघ कृष्ण चोथ ये चार बड़ी चोथ होती है |
पुजा का सामान : -
कुंकू, हल्दी, चावल, गुलाल, मेहंदी, पान, सुपारी, पैसा, गुड, दूर्वा, पुष्प, दीपक, गेहू, जल का लोटा, पाटा |
पुजा का विधी : -
पहले पाटा मांडना | दीवार पर सूरज ,चन्द्रमा , बीच में चोथ का त्रिशूल मांडना | पान पर पैसा सुपारी का गणेशजी बनाकर रखना |फिर पुजा करके आरती करना ,कहानी सुनना | रात्री में चन्द्रमा निकलने पर अर्ध्य देना |
उजवना : -
१३ सुहागिन स्त्रिया और १ साख्यो जिमाकर नारियल देते है |कलपना निकालते है | कोई हर महीने की चोथ का उजवना करते है | कोई ४ बड़ी चोथ के उजवना करते है | कोई सिर्फ करवा चोथ का उजवना करते है |
अक्षय तृतीया :
वैशाख शुक्ल तृतीया को आखातीज आती है | गंगा स्नान,कुरुक्षेत्र और समुद्र स्नान का उस दिन महत्व है | इस दिन भगवान के श्री अंग का चंदन लेपन होता है | इसलिए मंदिरों में चंदन देना | आज दिया हुआ कोई भी दान अक्षय होता है |इस दिन दीप दान का विशेष महत्व है | इस दिन बद्रीनाथ धामके पट खुलते है |
गंगा सप्तमी : -
इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है |
जानकी नवमी : -
इस दिन सीता माता का जन्म उत्सव मनाया जाता है |
श्री नृसिंह जयंती : -
वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को नृसिंह जयंती मनायी जाती है | नृसिंह भगवान का जन्म सायंकाल को मनाया जाता है | घर में नृसिंह भगवान का पूजन करके नये केसरीया वस्त्र पहनाये जाते है |
वैशाखी पूर्णिमा :-
इस दिन गंगास्नान का बडा महत्व है | इस दिन मिष्ठान्न ,वस्त्र, तिल, शहद आदि दान देते है | धर्मराज के निमित्त मटकी, गलना, पंखी, मिठाई, दही, फल दान देने से गौ दान के बराबर पुण्य होता है |
वड सावित्री : -
वड सावित्री का व्रत सुहागिन स्त्रियों को सौभाग्य, पुत्र, पौत्र, धन ,सम्पति व् पति प्रेम देने वाला है | पति की आयुवृधि के लिए स्त्रिया इस व्रत को करती है |
पुजा का सामान : - हल्दी, कुंकू, गुलाल, चावल, पान, सुपारी, कच्चा सूत, मोली, कपास के वस्त्र, गुड, आम, गेहू |
पुजा विधी : - वड के पेड़ को पाणी से सिच कर हल्दी, कुंकू, गुलाल, चावल चढ़ाना | पान, सुपारी, रुपया रखकर गणेशजी की पुजा करना | कच्चा सूत एवं मोली सात बार पेड़ को लपेटना | आम और गेहू चढ़ाना | आरती करना | कोई अमावस या कोई पोर्णिमा को यह व्रत करते है | पाच या सात स्त्रियों की गेहू और आम से ओटी भरते है |
उद्यापन : - इस व्रत को तेरस, चौदस, पोर्णिमा पर निराहार रहना या फलहार भी कर सकते है | हररोज पुजा करना, वड सावित्री की पोथी सुनना, घर में अखंड दिया रखना |
पुजा का सामान : - हल्दी, कुंकू, गुलाल, चावल, पान, सुपारी, कच्चा सूत, मोली, कपास के वस्त्र, गुड, आम, गेहू, पंचामृत, जोड़ा-जोड़ी का पोशाख, सवाग का सामान |
पुजा विधी : - तिन वर्ष तक व्रत करके उजवना करते है | कोई एक ही दिन व्रत करके उजवना करते है | वट सावित्री के दिन पुजा होम-हवन करना | दुसरे दिन ब्राम्हण को भोजन कराना और पारना छोड़ना |
गंगा दशहरा की पुजा : - जेष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा की पुजा की जाती है | इस दिन दस चीजोको दान देना | बेसन के लड्डू, पेढा, आम, अनारसे, अमरुद, खारक, सुपारी, बड़ी इलायची, लॉग ये सभी चीजे १०-१० देना | एकम से दशमी तक गंगा स्नान का महत्व है |
महेश नवमी : - जेष्ठ शुक्ल नवमी को महेश नवमी आती है | इसी दिन महेश भगवान की कृपा से माहेश्वरी जाती की उत्पत्ति हुई है |
निर्जला एकादशी : - जेष्ठ शुक्ल एकादशी निर्जला एकादशी के नाम से जनि जाती है | यह सबसे बड़ी एकादशी है | २४ एकादशी का व्रत इसी दिन से पकड़ना | इस दिन आम और शक्कर ब्राह्मणों को देना | निर्जला व्रत करने पर द्वादशी को जल का घडा और सिधा ब्राम्हणों को देना | फिर जलपान करना |
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को रथ यात्रा होती है | आषाढ़ी एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहते है | आषाढ़ मास से कार्तिक मास तक चातुर्मास के नियम होते है | चातुर्मास में विवाह,घरभरनी आदि शुभ कार्य नहीं होते |
हरियाली दिया की अमावस्या : -
इस दिन घर के सभी दियों की सफाई करके पाटे पे मांडना | और हलदी,कुंकू से पुजा करना |
श्रावण मास चतुर्मास में महत्व का माना जाता है | धर्मिक कार्य के लिए, व्रत के लिये, अन्नदान के लिये विशेष पुण्य लाभदायक है |श्रावण मास में शिवजी के पुजा का बडा महत्व है |
गुरु पौर्णिमा
इस दिन अपने गुरु की पुजा करके वस्त्र दक्षिणा देना चाहिये |
छोटी तीज : - श्रावण शुक्ल द्वितीया को छोटी तीज आती है | इस इन स्त्रिया और कुवारी लडकिया माथा धोकर मेहंदी मांडना ,झूला झुलना | एकासना करना |
उजवना : - १६ सुहागिन स्त्रियों और १ साख्या को जिमाकर नारियल देवे |
नागपंचमी : - ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग है | इसलिए नाग देवता की पुजा पंचमी को ही करते है | यह व्रत बहन भाई के लिये करती है | इस दिन कोई चीज चिरना नहीं चाहिये |
पुजा का सामान : - दूध, हल्दी, कुंकू, चावल, गुलाल, मोली, सुपारी, पान, गेरू, कोयला, पुष्प, दूर्वा, दीपक, अगरबत्ती, लाह्या,नारियल |
पुजा की विधी : -
१.दीवार पर चुने से पोत कर गेरू और कोयले से नाग देवता निकालते है |
२.मटकी पर नाग देवता का चित्र मांडकर पुजा करते है |
३.नागदेवता के वारुल के पास जाकर पुजा करना |
अपने घर के पद्धति के अनुसार पुजा करना चाहिये | दूध,जल से छीटा देकर हल्दी,कुंकू,चावल,मोली चढ़ाना | नारियल बधारना और लाही का भोग लगाना |
राखी पौर्णिमा : -
श्रावण शुक्ल पौर्णिमा को राखी पोर्णिमा आती है | इसे रक्षाबन्धन कहते है | इस दिन ब्राम्हण अपने हाथ में रक्षा सूत्र बांधते है |
काजली तीज का सिंजारा : - भाद्रपद कृष्ण द्वितीया को सिंजारा आता है | इस दिन सुहागिन स्त्रिया और कुवारी लडकिया माथा धोती है, मेहंदी मांडती है ,चिरम्या खेलती है | रात में दही पान पेढा का अधरातिया करते है |
बड़ी तीज (काजली तीज ) : -सुहाग की प्राप्ति के लिये यह व्रत होता है | यह व्रत उम्रभर करना चाहिये नही तो कमसे कम १६ साल करना चाहिये |
पुजा का सामान : -हल्दी, कुंकू, गुलाल, चावल, मेहंदी, मोली, काजल, पान, सुपारी, दिया, फूल, लाल वस्त्र गोटा लगाया हुआ, अगरबत्ती, नथ, काकडी, नींबू, लिमडी, भुट्टा, काचा दूध, आकडे का पान |
पुजा की विधी : -शाम के समय जरी के वस्त्र और आभूषन पहनकर नथ पहनकर कजली माता की पुजा करनी चाहिये | पाटे पर मिट्टी की पाल बांधकर नीम की डाली को रोपना चाहिये | पान पर सुपारी रुपया रखकर गणेशजी की पुजा करना | जल, दूध का छीटा देकर निमडी माता सीचना | वस्त्र मोली चढ़ाना | हल्दी, कुंकू, चावल चढ़ाना | मेहंदी, काजल, कुंकू की १६ टिकिया निकालना | सभी पुजा का सामान चढ़ाना | फिर पाल में निम्नलिखित चीजों को देखकर यह बोलना –
|| तलाव में सातू दिख्यो ,दिख्यो दिख्यो तुटयो ||
सातू, नथ, कसुवल कपड़ा, भुट्टा, दीपक, काकडी, नींबू | फिर हाथ में सातू लेकर कहानी सुनना | सभी को टिका लगाकर रात में चन्द्रोदय होने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देना | चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद सातू पासते है | फिर आकडे के पान से दूध और पाणी पिया जाता है | फिर सातू खाकर पारना छोड़ते है |
उद्यापन : -यह उद्यापन पियर का होता है | सव्वा पाव के १६ पिंडे बनाये जाते है | और १६ सुहागिन स्त्रीयों को दिये जाते है | एक साख्या का पिंडा होता है |
भाद्रपद चोथ : - भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी को चोथ का व्रत आता है | वैशाख मास की चोथ के समान पुजा करना, कहानी सुनना |
उबछट : - भाद्रपद कृष्ण षष्टि को उबछट या चंदन षष्टि आती है | यह व्रत राजस्वल दोष निवारण के लिये करते है | २६ साल तक किया हुआ व्रत को विशेष महत्व है | नदी, तालाब या घर पर शाम को स्नान करे | स्नान करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने तक खड़ा रहना चाहिये | स्नान करने के बाद मन्दिर जाकर रक्तचंदन जल में घोल कर पीना उसके बाद सभी मंदिर में जाकर भगवानजी के दर्शन करना | स्नान के बाद चंदन प्राशन करे तक मौन धारण करना चाहिये | रातमे चन्द्रोदय होने पर अर्घ्य देकर आरती करने के पश्चात आप व्रत छोड़ने के लिए बैठ सकती है |
पुजा का सामान : - हल्दी, कुंकू, चावल, रक्तचंदन, पुष्प, दीपक, जल |
उजवना : - उजवना में कुवारी लडकिया (जो रजस्वला नही होती है ) उन के लिये ६ लडकिया और १ साख्यो ,शादी के बाद १३ सुहागिन स्त्रिया और १ साख्या को जिमाकर नारियल देना चाहिये |
श्री कृष्ण जन्म अष्टमी:भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को जन्माष्टमी मनाते है | इस दिन घरमे भगवान का हिंडोला सजाया जाता है | पंजेरी, पंचामृत , अजवायन ,फल, मेवे का भोग रात्री में लगाते है | रात्री में १२ बजे तक भजन कीर्तन करे, फिर आरति एवं प्रसादी करे | दुसरे दिन सुबह माखन-मिसरी का भोग लगाये | इस दिन गौ दान का महत्व है |
उद्यापन : - गर्भवती स्त्रियों के लिये यह उजवना आवश्यक है | आठ गर्भवती स्त्रिया और एक साख्या को फलहार कराते है और नारियल देता है |
गोगा नवमी : - इस दिन गोगाजी की पुजा करते है | राखी, मोली, हल्दी, कुंकू, चावल, पुष्प चढ़ाना | नारियल बधारना और खीर पूरी का भोग बताना |
बछ बारस : - भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को बछ बारस आती है | बछ बारस का व्रत बेटे के लिए किया जाता है |
पुजा का सामान : - गाय, बछड़ा, वस्त्र, हल्दी, कुंकू, चावल, मोली, मेहंदी, पुष्प, गुड, पान, सुपारी, रुपया, जवार , बाजरा, सातू, मोठ, चना, जवार बाजरे के आटे में गुड मिलाकर छोटे छोटे पिंडे |
पुजा का विधी : - जल से गाय के पैर धोना, सिंग में वस्त्र, मोली बांधना, हल्दी, कुंकू, चावल चढ़ाना | पैरों को मेहंदी लगाना | दोनों की पुजा करके जवार बाजरे के पिंडे और मोठ चना खिलाना | आरती करना, परिक्रमा लगाना | ग्वाले को टिका निकालकर सातू, रुपया दक्षिना देना | गाय की पुजा करके पश्चात पालकी(ओगडा) की पुजा करना | उसपर सातू के लड्डू रखकर अपने बेटे को उठाने के लिये बुलाना | फिर हाथ में बाजरा के आखे लेकर कहानी सुनना | उस दिन कोई चिरना-काटना नहीं | मुंग ,गेहू खाना नहीं | कलपना में मोठ चना रुपया निकालकर सासुजी को देवे |
हरतालिका: - भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हरतालिका तीज आती है |
पुजा का सामान : - हल्दी, कुंकू, चावल, मेंदी, मोली, चंदन, काजल, पान, सुपारी, रुपया, कपास का वस्त्र, पुष्प, दूर्वा, दीपक, नारियल, खारक, गुड, १६ प्रकार के पत्ते, बेलपत्र ,फल, धतूरे का फूल |
पुजा विधी : - सुबह या सायंकाल को स्नानादि करके पुजा की जगह तोरन बांधना, रंगोली काढना, फिर पाटे पर शिवलिंग,पार्वती सखी ,रेती की मूर्ति तयार करना | फिर सभी पुजा सामग्री से पुजा करना | कथा सुनना एवं सभी बडो को प्रणाम करना | रात में १२ बजे तक जागरण कीर्तन करना | दुसरे दिन दही भात का नैवेद्य बताकर पुजा विसर्जन करना |
गणेश चतुर्थी :- भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश चतुर्थी आती है | गणेश चतुर्थी को गणेशजी की स्थापना कर के अनंत चतुर्दशी को विसर्जन करते है |
पुजा का सामान : - गणेशजी की मूर्ति, पंचामृत, हल्दी, कुंकू, गुलाल, चावल, मोली, पान, सुपारी, पुष्प, पुष्पहार, २१ दूर्वा, गेहू, नारियल, जल का कलश, चौरंग, चूरमा के लड्डू या मोदक, फल |
पुजा विधी : - दोपहर अच्छी चोघडिया में गणेशजी के मूर्ति की स्थापना,पुजा करना | हररोज सुबह शाम पुजा आरती करना |
त्रुशी पंचमी :-भाद्रपद शुक्ल पंचमी को त्रुशी पंचमी आती है | माहेश्वरी समाज में ज्यादातर इसी दिन बहन भाई को राखी बांधती है | राखी कच्चे सूत की लाल और पीले रंग से रंगी मोली की बनाना चाहिये | लाल रंग अग्नितत्व का प्रतीक है, अग्नितत्व संकट नाशक है | पिला रंग पृथ्वीतत्व का प्रतीक है | और पृथ्वी तत्व स्थिर भाव रखता है |इसलिए लाल-पीले रंग की राखी बांधनी चाहिये |
उजवना : - पांच जोड़ा-जोड़ी एवं एक साख्या को भोजन कराके नारियल देवे |
राधा अष्टमी : - भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को राधाष्टमी रहती है |जगजननी भगवती श्री राधाजी का प्राकट्य सुबह ४ बजे हुआ | पुजा आरती करना राधाष्ट्क का पाठ करना |
केसरया कंवरजी : - नवमी को केसरया कंवरजी की पुजा करना | रातमे मटके पर काजल से सात नाग काढना | नारियल बधारना |
रामदेवजी दशमी : - भाद्रपद शुक्ल दशमी को रामदेवजी की दशमी रहती है | रामदेवजी की प्रतिमा मांडकर पुजा आरती करना | नारियल बधारना |
देवझूलनी ग्यारस : - भद्रपद शुक्ल ग्यारस देवझूलनी ग्यारस कहलाती है | भगवान इस दिन करवट बदलते है |
अनंत चतुर्दशी : - भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी आती है | इस दिन अनंत विष्णु भगवान और शेष भगवान की पुजा होती है |
गाजमाता : - भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को गाजमाता की पुजा की जाती है | मिट्टी के भिल-भिलनी और एक छोटा लड़का बनाते है | सरपर छोटी छोटी टिकरी बनाना |
पुजा का सामान : - हल्दी,कुंकू,चावल, मेहंदी, मोली, गुलाल, पान, सुपारी, रुपया, पुष्प, वस्त्र, गेहू, चावल के लड्डू |
पुजा की विधी : - गेहू के आँखे पर भिलभिलनी रखकर पुजा करना, कहानी सुनना, कलपना निकालना |
उद्यापन : - १४ सुहागिन स्त्रिया ओर एक साख्या को भोजन कराके, नारियल देते है | उस दिन किसी किसी के यहां सिर्फ रोट ही खाते है | लड़का होने पर उसका उद्यापन होता है |
श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पोर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस तक रहता है | अपने बडो के रुन से मुक्त होने के लिये उनकी मृत्यु तिथि और भाद्रपद पश में श्राद्ध तिथि को श्राद्ध करके उरून होता है | पितरों की प्रसन्नता हो जाय तो घर में किसी बात की कमी नहीं रहती | श्राद्ध के दिन पितरों का पिण्ड दान तथा तर्पण आदि करके उनसे विनती करनी चाहिये और ब्राह्मनो को भोजन कराके दशिना देना चाहिये |श्राद्ध में खीर,जलेबी,मालपुआ,उडल की दाल,रेहता,तोरू का साग,ककड़ी ,का विशेष महत्व है | श्राद्ध पश में १५ दिन पितरोके निमित्त काक को रोटी रखना तथा गाय को पूरी रसोई खिलाना चाहिये | विस्मृत पितरों के श्राद्ध अमावस को करना | आय नवमी को सवासन स्त्री तथा पंचमी को कुवारी लड़की जिमाना चाहिये |सर्व पितरि अमावस को एक जोड़ी और एक लडकी तथा छोटा लड़का जिमाना चाहिये |
अश्विन नवरात्र :
अश्विन शुक्ल एकम से देविका शारदीय नवरात्र आरंभ होकर नवमी तक नौ दिन चलता है |नवरात्र में नौ दिन का पूजन कार्य चैत्र नवरात्र जैसे ही होता है | नवरात्र में रामायणजी का पाठ करना चाहिये |
घट की पुजा को सामान : -
हल्दी, कुंकू, गुलाल,चावल, मोली, मंगलिक, खडीशक्कर, नागेली का पान, सुपारी, रुपया, तांबा को लोटो, लोटा म पांच पान ओर उपर नारियल रखना, सात धान मिलाकर जवारा बावना |
विजया दशमी :
अश्विन शुक्ल दशमी को विजया दशमी आती है | इस दिन शाम को सीमोल्लंघन करते है | शमी वृक्ष के पत्तो को सोना समझ प्रथम भगवान को चढाते है, सभी बडो को प्रणाम करके आशीर्वाद लेते है |
शरद पोर्णिमा :
अश्विन शुक्ल पोर्णिमा को शरद पोर्णिमा आती है | शरद पोर्णिमा को रास उत्सव मनाया जाता है | इस दिन भगवान और चन्द्रमा को खीर का नैवेद्य लगाने की प्रथा है |
कार्तिक मास सभी मासों से अत्युत्तम मास है | यह परमपूज्य तथा पवन मास है | इस मास में प्रातः काल स्नान, देवपूजा, तुलसी पुजा, नित्य दीपदान, एक भुक्त भोजन का महत्व है | कार्तिक मास की देवता ‘राधा दामोदर’ है |इस मासमे सूर्योदय से पहले ठंडे पाणी से स्नान करने का महत्व है | ये सब हमारी मनकी दृढ़ता और संयम बनाने के लिए बनाये गये नियम है |
करवा चोथ : - कार्तिक कुष्ण चतुर्थी को करवा चोथ आती है |
पुजा का सामान : - हल्दी, कुंकू, चावल, गेहू का आखा, पान, सुपारी , पैसा, मंगलिक, मेंदी, मोली, अगरबत्ती, दीपक, पुष्प, दूर्वा, चूरमा का भोग, तांबे का लोटा लेते है | लोटे में पैसा, सुपारी, रखते है | फिर उपर से लाल कपडा बांधकर उसपर बेर, चवलिकी शेंग, आवलो, काचरा, बाजरी को सित्यो रखे |
पुजा का विधी : - शाम के पहले करवा में पाणी भरना | फिर उनकी पुजा करना | चोथ माता की पुजा करना, कहानी सुनना | रात में चन्द्रोदय होने पर अर्घ्य देकर कलपना निकालना | सासु, ननंद या जिठाणी कनावु करवो पिनो | फिर करवा और कलपना सासुजी,जिठाणी या ननंद को देवे |
उजवना : - १६ सुहागिन स्त्रिया और १ साख्या को खाना खिलाकर पीतल या तांबे के लोटेमे गेहू पैसे डालकर देना |
धनतेरस : - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धन्वन्तरी त्रयोदशी आती है | इस दिन कोई जुना दिया की पुजा कर, कोई नया दिया की पुजा कर | इस दिन रुपया,धन , जेवर की पुजा की जाती है |
रुपचतुर्दशी : - कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी आती है | इसे छोटी दीवाली भी कहते है | इस दिन उबटन तेल लगाकर स्नान करनेका महत्व है |
दीपावली : - दीपावली हिन्दुओं का सबसे बडा त्यौहार है | दीपावली को लक्ष्मीजी का आगमन होता है | इसलिये हमे अपने घर की साफसफाई करनी चाहिये | इस पर्व पर मांडने मांडना आवश्क है | लक्ष्मीजी के पगल्या आदि मांडते है | इस दिन लक्ष्मीजी की पुजा बड़े धूम-धाम के साथ करते है | तथा साथमे व्यापारी अपने वर्ष के वही खाते पुरे कर, नये वर्ष के नये वही खातो की पुजा करते है |
पुजा का सामान : - हल्दी, कुंकू, गुलाल, चावल, मुंग, धना, गेहू, खारक, बदाम, खोबरा की बाटी, पैसा, पान ,सुपारी, मोली, केशर को चंदन, रक्तचंदन, धुप आरती, अगरबत्ती, पुष्प, चवलिकी शेंग, मुरड शेंग, केवड़ा को पान, कमळ का फूल, कमलगट्टा , जाम ,सीताफल, फल, दिया, पणत्या, नया कपास की बत्या, तेल, मंगलिक, खडीशक्कर, बतासा, लाह्या, मखाना, शाम को लक्ष्मीजी का पूजन, वही-खता का पूजन, नई झाड़ू का पूजन और दिया की पुजा करनी चाहिये | लापसी-चावल का भोग लगाना | लक्ष्मीजी की पुजा होने के बाद रात में मेहंदी लगाते है |
प्रतिपदा ( पाडवा ):- इसे ‘राम-रामसा’ या रामरामी कहते है | इस दिन गोवर्धन पूजन और अन्नकूट करते है | घर के सामने गोवर्धन बनाकर उसकी पुजा की जाती है | रात की लक्ष्मी पुजन की थाली में सब पूजन चीजे लेकर पुजा करना |
भाईदुज :- भाई बहन की प्रेम का त्यौहार भाईदूज के रूप में मनाया जाता है | इस दिन बहन भाई को तिलक करके आरती कर उनकी मंगल कामना करती है | इस दिन बहन के घर भाई को जरुर भोजन करना चाहिये |
गोपाष्टमी :- कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी आती है | इस दिन व्रत करते है | गौ माता का पूजन करते है |
पुजा का सामान : - हल्दी, कुंकू, गुलाल, चावल, मेंदी, मोळी, पान,सुपारी, पैसा, धुप आरती, कपूर आरती, मंगलिक | गेहू के आटे में घी-शक्कर मिलाकर आठ लड्डू बनाकर वह गाय को देना |
आवला नवमी :- कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी ( आवला नवमी ) आती है | इस दिन पुजा,जप-पाठ एवं दिया हुआ दान का पुण्य अक्षय होता है | आवले के निचे किया गया ब्राह्मण भोजन या दान देने से विशिष फल मिलता है |
पुजा का सामान : - हल्दी, कुंकू, चावल, कच्चा दूध,जल का लोटा, कच्चा सूत ,पान,सुपारी |
देवोत्थान एकादशी :- कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवोत्थान एकादशी आती है | इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है | इस दिन तुलसी विवाह करना | इस दिन के बाद शादी-विवाह आदि शुभ कार्य होना शुरू होते है |
वैकुंठ चतुर्दशी :- कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी आती है |
कार्तिक पोर्णिमा :- कार्तिक शुक्ल पोर्णिमा महान पर्व है | इसको त्रिपुरी पोर्णिमा कहते है | इस दिन गंगा स्नान , दीप दान,गौ दान का बडा महत्व है | इस दिन कार्तिक मास के व्रत की समाप्ति तथा चातुर्मास की समाप्ति होती है |
मार्गशीष मास गोपमास है और भगवान को अतिप्रिय है | भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते है की मास में मै मार्गशीष मास हूँ | मार्गशीष शुद्ध एकादशी को गीता जयंती आती है |
दत्त जयंती:-
पोर्णिमा को दत्त जयंती आती है | इस दिन दत्त भगवान की पुजा आरती करते है | दत्त भगवान का जन्म शाम सात बजे हुआ | वैतरनिका व्रत :-
यह व्रत मिंगसर महीने में आटा है | मिंगसर कृष्ण दशमी को धान खाना | एकादशी को निगोट रहना | बारस को अलूना फलहार करना | इस प्रकार यह व्रत कोई लगातार दो वर्ष करते है | या कोई एक ही व्रत करके उद्यापन करते है |
उद्यापन : -
एकादशी का उद्यापन होता है | लक्ष्मी-नारायण की सोने को मूर्ति और चांदी की गाय( अगर आप गौ दान करे तो ओर भी महत्व है ), नैया, उसपर छोटीसी केवर की मूर्ति, एक जोड़ी का पोशाख, वायन दान, शय्यादान, पाच बर्तन, पान, सुपारी | पुरे सामान के साथ होम, हवन करके ब्राम्हण को भोजन करावे |
पौष महिनेसे एक महिनेतक मल लगता है | मलमास में कोई शुभ कार्य करना नही | बहन-बेटी को सीख देते नहीं | इस माह्मे चार रविवार बिना नमक का अन्न ग्रहण करने का महत्व है | उस दिन ठंडे पाणी से स्नान करके, सूरजजी की पुजा करते है |
मकर संक्रांति : -
सूर्य जब धनुराशी को छोड़ कर मकर राशी में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति होती है | मकर संक्रांति कभी माघ में तो कभी पौष में आती है | वैसे तो १४ जनवरी को पुरे भारत में मकर संक्रांति मनायी जाती है | इस महापर्व पर प्रातः काल जल्दी उठकर सफेद तिल्ली का उबटन लगाकर नहाना |
इस दिन कोई भी १३ चीजों के साथ १३ तिल्ली की लड्डू कलपते है | संकल्प इस दिन मुंग की दाल, चावल, घी,तिल्ली के लड्डू, घेवर, फेनी, फल, शक्कर अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करने का महत्व है |
माघ मास में सूर्य पुजा का महत्व है |
तिलकुटा की चोथ : - माघ कृष्ण चतुर्थी को तिलकुटा की चोथ आती है |
पुजा का सामान : - तिल, मंगलिक, हल्दी, कुंकू, मेंदी, मोळी , गुलाल, पान, सुपारी, पैसा, पुष्प, दूर्वा, गेहू का आखा, कपास क वस्त्र, अगरबत्ती, तिल्ली का लड्डू |
बसंत पंचमी : - माघ कृष्ण पंचमी को बसंत पंचमी आती है | इस दिन वसंत उत्सव मनाया जाता है | भगवान पर रंगबिरंगे पुष्प चढ़ाना और आम का मोहर भी चढाते है | केसरीया वस्तु का भोग लगाना |
रथ सप्तमी : - माघ कृष्ण सप्तमी को रथसप्तमी आती है | इस दिन सूर्य भगवान की पुजा का महत्व है | इस दिन सप्तधान्य ब्राह्मणों को दान देनेका महत्व है |
माघ शुध्द सप्तमी या चौदस को बायासा को धोक देते है | बायासा की प्रतिमा को कच्चा दुधसे धोकर पाटे पर गेहू रखकर हल्दी, कुंकू, चावल, मोली, पानसुपारी, रुपया चढ़ाना, नारियल बधारना |सात खोबरे के टुकड़े एवं सात लापसी के कवे का भोग लगाना | बायासा की लापसी सेकते नहीं है | बायासा की प्रतिमा कुलुप बंद अलमारी में नही रखना चाहिये | माघ शुध्द दशमी को रामदेवजी की पुजा करते है | चूरमा का भोग धरते है |
षटतिला एकादशी : - माघ कृष्ण एकादशी को षटतिला एकादशी आती है | इस दिन तिल के बने पदार्थ जरुर खाना चाहिये तथा तिल मिले जलसे स्नान करना चाहिये | इस दिन तिल दान का बडा महत्व है |
मौनी अमावस्या : - माघ कृष्ण अमावस को मौनी अमावस आती है | इस दिन किसी भी पुण्य क्षेत्र में स्नान करने का महत्व है |इस दिन दान करने का महत्व है | ब्रम्हाजी की पुजा करनी चाहिये |
फाल्गुन मास में कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि आति है | सोमवार को महाशिवरात्रि आवे तो विशेष पुण्य कारक होती है | बेलपत्र,धतूरे के फल और फूल, से शिवजी की पुजा की जाती है | इस दिन रात में १२ बजे की गयी पुजा का विशेष महत्व है |
होली : -
फाल्गुन पौर्णिमा को होली का त्यौहार मनाया जाता है | शाम को होली की पुजा करके नारियल बधारना और लापसी का भोग लगाना |
धूलिवंदन:-
धूलिवंदन और गणगोर का व्रत एक बंधन से जुडा होता है | होली की रशा को मिट्टी के कुंडे में डालकर गेहू बोये और सोलह दिन उसकी पुजा करे | इसे ईलख्या-विलख्या का व्रत कहते है | जो की कवारी लडकिया करती है | धूलिवंदन से शितलासप्तमी तक माताजी के आखता रहते है | रंग पंचमी को भगवानजी पर केसर रंग के छीटे देते है | शीतलासप्तमी आने पर पहले दिन आपने घर की परमपरा के अनुसार रसोई बनायी जाती है | सप्तमी को शीतला माता की पुजा की जाती है | होली थंडी करते है | विवाहित स्त्रिया इसी दिन कुंडे में गेहू(जवारे) बोती है |
सूरज रोटा:-
चैत्र मास के कृष्ण पश में होली के बाद, पहले रविवार को सूरज रोटा का व्रत आता है |
पुजा का सामान : -
हल्दी,कुंकू,चावल,मोली,गुड,पुष्प,पान,सुपारी,जल का लोटा,गेहू के आटे का अलूना छेदवाला छोटा रोटा |
पुजा विधी : -
दोपहर में पिपल के पेड़ के नीचे सूरज भगवान को अरग देकर सब पुजा का सामान चढ़ाये, फिर छेदवाले रोटे के छेदमेसे सूरज भगवान के दर्शन करते है |
उजावना : -
८ सुहागन स्त्रिया और १ साख्यो को भोजन कराके नारियल देवे | सूरज रोटे का उजवना करने के बाद गणगोर का उजवना करते है |
अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते है | भगवान का पूजन, जप-तप ,दान करने का विशेष महत्व है | इस मास में नक्ता उपवास ( शाम को दिया लगाकर भोजन करना ) करते है | गेहू, मुंग की दाल, भेंडी, तुरई, दही, आलू इतनी ही चीजे खाये |
इस मासमे कोई मंगलिक कार्य नही करते है | श्री भगवानजी का पाठ, श्री सूक्त, पुरुष सूक्त, के पाठ करना और जाली की कोई भी ३३ चीजे वान स्वरूप ब्राह्मणों को देना चाहिये | दीप दान का विशेष महत्व है |
बेटी-जवाई को वान देते है | कोई कोई ३३ ब्राह्मणों को या ३३ जोड़ो को भोजन कराके सौभाग्य वायन दान देते है |
हम माहेश्वरी लोग अपनी मातृभूमि से कितने ही दूर क्यू न बस गए हो पर हमारी संस्कृती हमारे संस्कार हमारे गीत और हमारे रीतिरिवाज आज भी वही है जो हमारे पूर्वजो ने अपनाये थे |आज भी हमारे घरो में जन्म मरण व् परन वे ही रीतिरिवाज व् संस्कार पाले जाते है |
उनमे जीवन के गूढ़ अर्थ रहस्य छुपे हुए है |