अंत्येष्टि संस्कार

मृत्यु यह जीवन को छीन लेनेवाली कोई भयावह वस्तु नहीं, बल्कि जीवन का जीर्णोद्धार करनेवाली हितकारी प्रक्रिया मानी जाती है | इसलिए सोलह संस्कारों में मनुष्य शरीर के साथ जुड़ा यह अंतिम संस्कार अंतेष्टि संस्कार के नाम से जाना जाता है |
१.जिस आदमी का मृत्यु-काल निकट हो,उसे जहा छत पर पोल नहो, ऐसी जमिनपर सुला देना चाहिये | यदि यह सम्भव न हो तो जिस कमरे में शव हो,वही जमिनपर सुला दे |
२.जिस स्थानपर उसे सुलाना हो, उस स्थानको गंगाजल से धोकर उस पर पवित्र मिट्टी और गोबर का चौका लगा दे |
३.तदनन्तर उसपर पिला सरसों और काला तिल बिखेर डे और कुशा बिछा दे |
४.फिर उसपर गंगाजी की सुखी रेणुका बिछा दे |
५.भूमि पर कुशा के आसन,आसन न हो तो नयी चटाई बिछादे |
६.मरणासन्न व्यक्ति को स्नान करा कर शय्यापर सुला दे | यदि अवस्था स्नान करने योग्य न हो तो शुद्ध कपड़ा गंगाजल में भिगोकर उससे धीरे-धीरे पूरा शरीर पोछ दे और यदि यह भी सम्भव न हो तो गंगाजल के छीटे दे दे | स्नान के लिए हो सके तो तांबे का लोटा और परात ले |
७.मरणासन्न व्यक्ति को नये कपड़े पहना दे | गले में तुलसी की माला पहना दे | मस्तक पर गोपी चन्दन तथा गंगाजी की रेणुका का तिलक करे |
८.मूह में मूंगा,मोती,सोना,दही, खडीशक्कर ,गंगाजल और तुलसी पत्र डाल दे |
९.सप्ताद्वार पर (२ आँखे,२ कान, १ नाक ,मुख और ब्रम्हरंध्र )तुलसीपत्र रखना चाहिये |
१०.गुड,गेहूं का आटा और घी एक थाली में लेकर मृत व्यक्ति का हाथ लगाकर गाय को देना | गाय न हो तो घर के बाहर रख देना |
११. मनुष्य की मृत्यु हो जाने पर बेटे की मांडी पर सुला दे | सुलाते समय पाव दशिन दिशा में और सिर उत्तर दिशा में करे | पुत्र,पोत्रादी सभी उस व्यक्ति को गंगाजल पिलाये |
१२.मरणासन्न व्यक्ति को गीतापाठ,भजन,विष्णुसहस्त्रनाम सुनाना चाहिये | भगवन्नाम ,संकीर्तन सब मिलकर करना चाहिये |
१३.कहीं कहीं जीव निकलने के बाद तेल की समई लगाते है | वह समई १२ दिन अखंड रखते है,बाती का मूह दशिन दिशा की और रखते है | बारहवे दिन उस समई पर मिट्टी के ठीकरी पर काजल पाडकर पगड़ी होने के बाद काजल,कुंकू देते है और समई बुझा देते है |
१४.जिस जगह पर प्रेत को सुलाते है उस जगहपर ११ दिन तक मिट्टी के दिये में थोडासा तेल डालके एक बाटी डालके शामको रखते है |


मनुष्य की उत्तर क्रिया : -

घी के लिये लोटा,पिंड के लिये थाली,आटा,जव और काले तिल | गाव के लोग आने के बाद पिंड करवाते है | ५ पिंड बनाते है | जिस जगहपर अर्थिको सुलाते है ,वहा एक रखते है | १ दरवाजेमे रखते है ,पुरुष या स्त्री की योनिमार्ग पर १ रखते है | १ रुपया और यह पिंड सफेद कपड़े में डाल कर रखा जाता है | सुहागन स्त्री की मौत पर पैसा और पिंड लाल कपडे में रखते है | कहीं पर बाकी पिंड की थाली पेट पर बांधते है | मनुष्य के पीछे उसकी स्त्री जीवित हो तो अर्थी के साथ लाल-पीले रंगकी साड़ी,चूड़ी और काली पोत देते है | अर्थी निकालने के समय एक बहु हाथ में पाणी का लोटा ले कर रास्ते में छिड़कती है,दूसरी हाथ में मिट्टी का दिया अगर समई (तेल की पनती )लेते है और बाकी बहुए अपने पल्लू से पथ बुहारती है | अर्थी ले जाने के बाद जहाँ पर अर्थी सुलायी हुई थी, वह जगह गाय के गौबर से बड़ी या छोटी बहु बाये हाथ से लीपती है | बाकी पूरा घर झाड़कर पोछना चाहिये | बाद में स्नान करके अर्थी की जगहपर तांबे की थाली में या पीतल की थाली में गेहू और पाणी से तिलांजलि देनी चाहिये | फिर उस जगहपर गेहू का आटा डाल के थाली से उसे प्लेन करके उसपर थाली ढकते है और उसपर मिट्टी का दिया सुबह शाम जलते है | बारह दिन तक सुबह-शाम दरवाजे की बायीं और रोटी डालकर पाणी डाले | रोटी पर थोडा गुड या शक्कर डालनी चाहिये | शाम को दरवाजे के बायीं और दशिन की ओर मूह करके मिट्टी का तेल का दिया रखना चाहिये |


सीदा :-

गाव में कोई सगा सबंधी ,या कोई ब्याई हो तो उनके यहाँ से सीदा आता है | उस सिदे की ही रसोई बनाते है |घर में से रसोई का सामान अन्तविधि के आने के पश्चात निकालते नहीं| सिदे का सामान – तुवर या मुग की दाल,गेहू का आटा,नमक,मिरची ,घी | उस दिन डाल में हलदी नहीं डालते |राई-जीरे की बगार नहीं देते | रसोई बच गई हो तो सब बाहर निकालकर दे देना |चूल्हा,चोका सब धो लेना चाहिये |


क्रिया करनेवाले व्यक्ति के लिये : -

बारह दिन व्रतस्थ रहना | गदिपर नहीं सोना |कंबल या सतरंजी पर सोये | एक समय भोजन करे | मृत व्यक्ति के बेटे का कर्तव्य है की अपने माता-पिता का दाह कर्म मंत्राग्नी से करे ओर १० दिन की क्रिया करे | क्रिया कर्म गंगाजी पे किया जाता है | नदी न हो तो बगीचा या बावड़ी पर भी करते है | पिंड के लिए पहले दिन का थाली-लोटा काम में लाते है | घर आने के बाद घर के बाहर एक कोने में वह रखा जाता है, घर में नहीं लाते | अस्थि गंगाजी में विसर्जित करते है | जाने में देर हो तो अस्थि बगीचे में, खेत में या घर के बाहर टांगकर रखते है | घर में नहीं लाते और जमीन पर भी नहीं रखते |

तीसरे दिन की विधी : -

तीसरे दिन परिवार के सभी सदस्य रक्षा समेटने जाते है | साथ में कलतान के थैले,रेशमकी थैली,बादली,चिमटा,पिंड बनायीं हुयी थाली, भगुना ,चम्मच, ४ पत्रावली, गोबरी, चावल, घी, शक्कर, दूध, गेहू का आटा, गोमूत्र, जव,तिल,हल्दी,कुंकुम,पुष्प,तुलसी,अगरबत्ती, गोपीचंदन ले जाते है | वही पर खीर-फाफडा बनाकर तीसरे दिन की कगोल निकालते है | रेशम की थैली में अस्थि डालते है | उस में भी मूंगा,मोती,सुवर्ण,चांदी आदि डालना चाहिये | यदि वही पर अस्थि विसर्जन करे तो इसकी जरूरत नहीं | पुरुष लोग जाने के बाद आटे पे जो थाली ढकी होती है, वह उठा के देखते है | मृतात्मा को जो भी योनी मिलती है उसके चिन्ह आटे पर दिखाई देते है ऐसी धरना है | बाद में पूरी घर की सफाई करनी चाहिये | सब स्त्रिया स्नान करके, एक ही कंघी से बाल सुलझाकर कंघी फेक देवे | फिर उसी जगह जव और तिलसे तिलांजली देवे |तीसरे ,नववे,और ग्यारहवे दिन परिवार की स्त्रिया बाल धोकर फिर तिलांजलि देती है | उठावने के लिए थाली में कपास,मीठा तेल,चावल,कोरा कागज और हलकुंड लेकर मंदिर जाते है | मंदिर से आने के बाद घर के सामने क्रिया करनेवाले व्यक्ति ने उस सफेद कागजपर “श्री राम” हलकुंड से लिखकर कागज को फाडकर पीछे बाजु में डाल देवे | तीसरे दिन से बारहवे दिन तक पंडितजी से “गरुड़ पुराण “का पठन करवाते है |


कागोल कैसी निकाले : -

चौथे दिनसे कागोल के लिये रोजाना खीर बनानी पडती है | मृतक यदि बुजुर्ग हो तो रोज मीठी रसोई बनाते है | घर में जितने लोग छोटे होते है(मृतक से )वही मीठा भोजन करते है| कागोल निकालते समय एक थाली में पत्रावली रखकर उसपर पांच ग्रास निकालते है | गाय,कुत्ता,अतिथि और दो कागोल के | पूरी रसोई उसपर निकाले उसपर तुलसीपत्र छोड़ते है | कुत्ते के ग्रासपर तुलसीपत्र नही छोड़ना | गाय ,कुत्ता, अतिथि का ग्रास निकाल के कागोल चूर लेते है और उसमे खीर डालते है | पुत्र-पौत्र पाणी का लोटा हाथ में लेकर आगे पाणी छिडकते है और पिछेसे कागोल लेके जाते है | किसी कारणवश कागोल ली नही गयी तो बाद में गाय को दे देनी चाहिये | तीसरे दिन से एक अतिथि हर रोज जिमाना चाहिये | उसका थाली लोटा अलगही रखा जाता है | बारहवे दिन को उसकी थाली में मिठाई और पुरिया रखके ,उसके साथ मृतक के पुराने कपड़े और पुरानी चप्पल देना |उसके जाने के बाद १-२ लोटा पाणी उसके रस्तेपर उसके पीछे छिडक देना चाहिये |


दसवे दिन की विधी : -

दसवे दिन नदी किनारे परिवार के लोग जाते है | वहा जो पिंड रखे जाते है,उनकी विधिपूर्वक पुजा करके श्राद्ध किया जाता है | काकबली के लिए जो पिंड बनाया जाता है उसे काक स्पर्श के लिए रखा जाता है | काक स्पर्श के बाद अश्मा पूजन होता है | अश्मा पर स्वकीय जन तिलांजली देते है और उनका विसर्जन करते है |


बारहवे दिन की विधी : -

जहा मृत व्यक्ति को सुलाया गया था उस जगह को गाय के गोबर से लीप ले और उसी जगह पर पिंडी श्राद्ध करते है | सपिंडी श्राद्ध हुए बिना ब्राह्मण घर पे खाना नहीं खाते | पिंड बनाने के लिए चावल बनाने पड़ते है | पुरुष हो तो पुरुष के कपड़े(धोती,शर्ट,टॉवेल,टोपी )रखना चाहिये | स्त्री हो तो साड़ी और ब्लाउजपीस रखना चाहिये |
*पांच बर्तन : थाली,लोटा,कटोरी,चरवी,और बड़ा चम्मच |
*सप्तधान्य : चावल,गेहू ,जव,उडीद,मटकी,चना,मुंग |
*अष्टमा दान : तिल,लोखंड,सोना,कपास,घी,तेल,नमक और गौ दान |यह सब अपनी इच्छानुसार करे |
*शय्यादान : गादी,तकिया,चद्दर(ओढनेकी और बिछानेकी ),कंदील या समाई या बैटरी,कांच,कंघी,आईना ,कुंकू,काजल,तुलसीमाला, काली पोत,बिछुड़ी और स्त्री और पुरुष की पोशाख,चप्पल,छत्री, आसन,पान का डिब्बा भरकर | इच्छा हो तो पलंग दे |
*धर्मराज का दान :कम्बल,कंदील ,काठी,चप्पल,कुछ रूपये डालकर एक पाकिट,पोशाख,और मिठाई |सब तेरहवे दिन सूरज निकलने से पहले अंधेरे में ही देना चाहिये | कंदील जलाकर देवे और उसे पीछे मुड के न देखने को बोले |
*पद दान : छत्री,चप्पल,अंगूठी,लोटा,पंचपात्र,आसन,लकड़ी,पंचा,दीपक, तुलसीमाला ,गोमुखी लड्डू, विश्नुसहस्त्रनाम,यह तेरह सामान १३ ब्राम्हणों को देना


शुद्ध पुजा : -

सपिण्डी श्राद्ध होने के बाद ब्राह्मण शुद्ध पुजा करवाते है | शुद्ध पुजा होने के बाद कुटुंब के लोगों के मृत के प्रीत्यर्थ धार्मिक कृत्य का संकल्प छुडवाते है | संकल्प करके सुखा सिधा और जल का घडा भरकर देते है |


पाग : -

बेटे को चौरंग पर बिठाकर पहले ननिहाल वाले पाग का दस्तूर करते है और बाद में ससुरालवाले जमाई की टोपी बदलते है | अपनी इच्छानुसार और गाव के रितिरिवाजानुसार देनेलेने का कार्यक्रम होता है | बाद में पुरुष लोक मंदिर जाते है,और घरकी स्त्रिया बिछाई हुयी जाजम उलटी करके झाड़ू लगाती है | घर की बहु की पल्लू में गेहू देते है,वही गेहू सब स्त्रिया मंदिर में बाये हाथ से चढ़ाती है | घर आने के बाद घर के बाहर बूंदी का लड्डू रखकर लोटाभर पाणी उन्देलती है |फिर बेटे के ससुराल वाले काजल टिकी देते है और नाख़ून को मेंहदी लगाते है |फिर दुबारा मूह धो कर दूसरा कुंकुम लगाती है | मंदिर जाते समय बहुएं पियर से आयी साड़ी ओढ़ के जाती है | शाम के भोजन में एक मीठा और एक हरी पत्ता सब्जी आवश्क है ,बाकी अपनी इच्छानुसार रसोई बना सकते है |

तेरहवे दिन की विधी : -

अस्थि यदि किसी तीर्थस्थान पर विसर्जित की हो तो वहा से आटे समय गंगाझारी लाते है |फिर गंगाप्रसादी करनी पडती है |


चोदह्वे का घड़ा : -

चोदह्वे दिन चोदह घड़े भरे जाते है |फिर मासिक श्राद्ध को घड़े नहीं भरे तो भी चलता है | कागोल निकालनेके बाद १४ ब्राम्हण जिमाने चाहिये | १२ महीने के सोलह श्राद्ध होते है | ये श्राद्ध किये बगैर घर में कोई मंगलकार्य नहीं होते | और यदि घर में मंगलकार्य करना हो तो १५ दिन के श्राद्ध पर ही छ मासिक श्राद्ध कर लेते है |छ मासी करने के बाद भी मृतक की तिथि पर हर महीने ब्राह्मण भोजन कराना,कागोल निकालना,ऐसा बडसी श्राद्ध तक करना चाहिये |११ महीने हो जाने पर बड्सी श्राद्ध करते है |


शोक मिटाने की विधी : -

मनुष्य की मृत्यु के बाद एक दो त्योहार जाने के बाद शोक भानते है | बेटे के ससुरालवाले ही यह विधी करते है | रसोई में सिरा या लापसी-चावल बनाते है | सब परिवार वालो को बुलाते है | भोजन के बाद पुरुषों को तिलक निकाल के टोपी,रूपये देते है और स्त्रियों को ब्लाउजपीस देते है | मेहंदी लगाते है और खाने का पान देते है |


सुहागन स्त्री की विधी : -

सुहागन स्त्री को सिर पर से स्नान कराना,घी लगाना,कंघी से बाल नहीं सुलझाना,बोर होवे तो बोर रखकर चोटी डालना,चोटी में मोली डालना,लाल-पिली या केशरी जरी-गोटे की या रिंगतारे की साड़ी पहनाना |कालिपोत,बिछुड़ी,चुडिया नथ पहनाना चाहिये |चोली उलटी पहनाना चाहिये | छोटी थाली में कुंकुम लेकर उसमे पाणी मिलाकर कपाल पर लगाना, उसपर चावल लगाना,इसी कुंकुम की मेहंदी हाथ और पांव में भी लगाना | गोद भरने का सामान : - चावल,सुपारी,खोबरा वाटी ,कुंकुम डब्बी,कालिपोत,आईना ,कांच की चूड़ी इस सामान से गोद भरना |ये सब चीजे पल्लू में बांधकर मोली के तार से बांध देना | उसकी अर्थी उठाते समय कुंकुम को थोड़ी दूर तक छिडकते जाते है | पंचांग देखना,यदि पिचक रहे तो पिचक भी बनाने पड़ते है |
- यदि स्त्री विधवा हो तो स्नान के बाद रेशमी वस्त्र पहनाते है | चोली उलटी पहनाते है | गोपीचंदन का तिलक लगाते है |
- यदि प्रसूति के समय किसी स्त्री की मृत्यु हो गयी तो उसके हाथों में राई और लोहे के कीलें (खिले) रखते है |और जाते समय रास्ते में भी थोड़े थोड़े डालते है |
- दूध पिता बच्चा मृत हो तो उसको दफनाते है | नमक,लाल कपडा लेके जाना पड़ता है | तिन दिन का सूतक रहता है | दफनाई हुयी जगह पर तिन दिन दूध और पाणी लेकर जाते है | थोडा थोडा वहा छिडकते है | ५ या ७ ब्राह्मण के बच्चों को दूध पिलाकर कपड़े देते है |
- दस साल का बेटा मरा हो तो बारह दिन का सूतक रहता है | दस साल के अन्दर मरा हो तो खाली तिन दिन का सूतक माँ-बाप को ही होता है |
- स्त्री मृत हो गई हो तो पियर में भी बारहवा करते है |१२ ब्राह्मणीयों को भोजन करा कर साड़ी,पीस,द्शिना देनी चाहिये |
- जवाई मृत हुवा हो तो उनका भी बारहवा ससुराल में करते है |१२ ब्राह्मण को भोजन करा कर द्शिना देते है |
- पति मरने के बाद बारह दिन के अन्दर स्त्री मर गई हो तो वह विधवा नहीं होती |उसका पूरा विधी सुहागन स्त्री जैसा करना चाहिये |
**नारायण नागबली श्राद्ध का क्या महत्व है ?
नारायण बली और नागबली यह अलग-अलग शास्त्र है और उनका प्रयोजन भी अलग है | ‘नागबली ‘ यह विधी नाग हत्या के परिहार्य और वंशपरमपरागत स्थावर जंगम संपत्ति पर नाग का वास्तव्य हो तो उसके परिहारार्थ किया जाता है |यह विधी घर में नही किया जाता | नदी किनारे अगर समुद्र तट पर किया जाता है | इस विधी में सुवर्ण की नाग प्रतिमा का पूजन और आटे के नाग का दहन किया जाता है | उन्हें गति मिलने के लिए बाकी विधी किये जाते है | नागबली के जैसे ही नारायण बली का विधी किया जाता है | उसके लिए ब्रह्मादी देवता, यमदेवता ,नारायण रूपी प्रेत इत्यादी की प्रतिष्ठापना करके पुजा विधान किया जाता है |आटे के प्रेत का दहन किया जाता है | प्रेत की सद्गति के लिए अनेक विधी किये जाते है | यह सब विधी पूर्ण जानकारी वाले पुरोहित से ही करवाना चाहिये | पूरा विधी तिन दिन का होता है |
**श्राद्ध क्यों और कैसे किया जाना चाहिये ?
अपने पितरों के प्रति जो भी कुछ श्रद्धा पूर्वक किया जाता है उसे श्राद्ध कहते है | श्राद्ध हर वर्ष किया जाना चाहिये | श्राद्ध के दिन घर में स्व्च्छता रखनी चाहिये | घर का भी वातवरण शांत और पवित्र रहना चाहिये | शारीरिक पावित्र्य भी उतना ही आवश्यक है | घर की स्त्री रजस्वला रहने पर श्राद्ध तिथि के दिन भोजन न देकर केवल सिधा देना चाहिये या रजोनिव्रत के बाद श्राद्ध करना चाहिये |
अपने बडो के रुन से मुक्त होने के लिये उनकी मृत्यु तिथि और भाद्रपद पश में श्राद्ध तिथि को श्राद्ध करके उरून होता है | पितरों की प्रसन्नता हो जाय तो घर में किसी बात की कमी नहीं रहती | श्राद्ध के दिन पितरों का पिण्ड दान तथा तर्पण आदि करके उनसे विनती करनी चाहिये और ब्राह्मनो को भोजन कराके दशिना देना चाहिये |श्राद्ध में खीर,जलेबी,मालपुआ,उडल की दाल,रेहता,तोरू का साग,ककड़ी ,का विशेष महत्व है | श्राद्ध पश में १५ दिन पितरोके निमित्त काक को रोटी रखना तथा गाय को पूरी रसोई खिलाना चाहिये | विस्मृत पितरों के श्राद्ध अमावस को करना | आय नवमी को सवासन स्त्री तथा पंचमी को कुवारी लड़की जिमाना चाहिये |सर्व पितरि अमावस को एक जोड़ी और एक लडकी तथा छोटा लड़का जिमाना चाहिये | ब्राह्मण के थाली में भोजन के पहले नमक नही परोसना चाहिये | भोजन शुरू होने के बाद आवश्कतानुसार नमक परोसे | भोजन करते समय ब्राह्मण से ‘अन्न कैसा है?’ यह नही पूछना चाहिये, अन्यथा पितर निराश होकर चले जाते है |


इतना तो करना स्वामी

इतना तो करना स्वामी ,जब प्राण तन से निकले |
गोविंद नाम लेकर, तब प्राण तन से निकले ||१||
श्री गंगाजी का तट हो, यमुना का बंसी वत हो |
मेरा सावरा निकट हो, जब प्राण तन से निकले ||२||
समुख ही सावरा हो, तिरछा चरण धरा हो |
मुरली में स्वर भरा हो, जब प्राण तन से निकले ||३||
पीतांबर कसी हो, छबी ये ही मं बसी हो |
होटों पे कुछ हसी हो, जब प्राण तन से निकले||४||
सिर सोहना मुकुट हो, मुखड़े पे काली लट हो |
यही ध्यान मेरे घट हो, जब प्राण तन से निकले||५||
केसर तिलक हो आला, गले वैजयंती माला |
मुख चंद्र्सा उजाला, जब प्राण तन से निकले||६||
नेत्रों में प्रेम जल हो, मुख में तुलसी दल हो |
अंतिम समय सफल हो, जब प्राण तन से निकले||७||
उस समय शीघ्र आना, नही श्याम भूल जाना |
बंसी की धुन सुनाना, जब प्राण तन से निकले||८||
-------***-------